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Highly researched articles about Mumbai’s underbelly by Vivek Agrawal. Cover of MumBhai illustrates the latest photo of Don Dawood Ibrahim from his safe house of Karachi, Pakistan. And MumBhai Returns cover shows don Ali Budesh. 70+ articles exposes underworld. 3 more books under same series are in writing.
“मुम्बई माफिया पर कुछ लिखना, वह भी तब, जब बहुत कुछ कहा-सुना-लिखा-पढ़ा जा चुका हो। एक चुनौती है। उससे अधिक चुनौती यह है कि कितना सटीक और सधा हुआ काम आपके हाथ में आता है। कोशिश की है कि एक ऐसी किताब आपके लिए पेश करूँ जिसमें मुम्बई के स्याह सायों के संसार के ढेरों राज सामने आयें। पत्रकार होना एक बात है, एक पुस्तक की शक्ल में सामग्री पेश करना और बात । हर दिन जल्दबाजी में लिखे साहित्य यानी ख़बरों की कुछ दिनों तक ही कीमत होती है। आपके लिए सहेज कर रखने वाली एक किताब में वह सब होना चाहिए, जो उसे संग्रहणीय बना सके। देश का सबसे भयावह भूमिगत संसार पूरे विश्व में जा पहुँचा है। ये तो ऐसे यायावर प्रेत हैं, जिनकी पहुँच से अछूता नहीं है। कुछ भी सुकुर नारायण बखिया, लल्लू जोगी, बाना भाई, हाजी मिर्ज़ा मस्तान, करीम लाला तक तो मामला महज़ तस्करी का था । वरदराजन मुदलियार ने कच्ची शराब से जुआखानों तक, चकलों से हफ़्तावसूली तक, वह सब किया, जिसे एक संगठित अपराधी गिरोह का बीज पड़ने की संज्ञा दे सकते हैं। उसके बाद मन्या सुर्वे, आलमज़ेब, अमीरजादा, पापा गवली, बाबू रेशिम, दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली, सुभाष ठाकुर, बंटी पांडे, हेमन्त पुजारी, रवि पुजारी, सन्तोष शेट्टी, विजय शेट्टी तक न जाने कितने किरदार अँधियाले संसार में आ पहुँचे, जिनके अनगिनत राज कभी फ़ाश न हो सके। मुं’भाई’ में आपको मिलेगी इनकी छुपी दुनिया की ढेरों जानकारी। इस रक्तजीवियों के संसार में कुछ ऐसा घटित होता रहा है, जो सम्भवतः कभी रोशनी में न आया। मुं ‘भाई’ में ऐसे अछूते विषय हैं, जिनके बारे में किसी ने सोचा न होगा। इस ख़ूरेजी दुनिया के विषयों पर पढ़ना कितना रुचिकर होगा, यह तो आपकी रुचि पर ही निर्भर है। मुं’भाई’ में समाहित किया है, कुछ ऐसा जो सम्भवतः पहली बार दुनिया के सामने आया है। किसी को यह पता ही नहीं है कि आख़िरकार इन आतंकफरोशों के गिरोह की संरचना कैसी है, पुराने और नये वक़्त का फ़र्क क्या है, वे कहाँ-कहाँ जा पहुँचे हैं, उनके अड्डे कैसे हैं, रिटायर होने के बाद क्या करते हैं गिरोहबाज… वगैरह-वगैरह… और भी ढेर सारे वगैरह हैं । इसका लेखन क़िस्सागोई की तकनीक में पत्रकारिता का तड़का लगा कर पेश किया है। यह पुस्तक मनोरंजन का मसाला न होकर मुम्बई के गिरोहों और उनके तमाम किरदारों की दुनिया का जीवन्त दस्तावेज़ है। विश्वास है कि पाठकों के लिए ये जानकारियाँ अनूठी होंगी । पुस्तक में मुम्बई के गिरोहबाजों, प्यादों, ख़बरियों में प्रचलित शब्दों व मुहावरों का पूरा ज़ख़ीरा ही सबसे अन्त में है । ये मुं’भाई’ श्रृंखला की पहली पुस्तक है। इसके साथ की दो और पुस्तकें हैं, जो बस आगे-पीछे प्रकाशित होने जा रही हैं। उसके बाद कुछ और पुस्तकें इसी शृंखला में पेश करेंगे।”